Krishna Sobti
Autore di Zindaginama
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Fonte dell'immagine: Sobti in 2011 By Payasam (Mukul Dube) - Own work, CC BY-SA 4.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=49868853
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कृष्णा सोबती जी का उपन्यास (उपन्यासिका/लम्बी कहानी/आख्यायिका) "तिन पहाड़" सर्वप्रथम 1968 में प्रकाशित हुआ था. इस उपन्यास में लेखिका ने मानवीय प्रकृति के कुछ विशेष पहलुओं नामतः प्रेम, वासना, विग्रह और धोखा का वर्णन एक यात्रा-वृत्तांत की-सी शैली में किया है.
कृष्णा जी के सजीव लेखन का ही परिणाम है कि कहानी के पात्र तो क्या, परिदृश्य में मौजूद प्राकृतिक सौंदर्य भी मन पर गहरी छाप छोड़ जाता हैं. मुख्य पात्रों, जया एवं तपन, का चित्रण इतनी गहराई और कुशलता से किया गया है , कि वह लम्बे समय तक याद आते हैं . दोनों के बीच का स्नेह, परवाह,प्रेम अत्यंत मनमोहक एवं सरस लगा है.
"अभी...अभी...तारों की लौ हल्की हो मानो मोतियों की लड़ी बन आई. सामने पूर्व में उजाले की लौ फूटी और किसी
अदीखे हाथ ने पहाड़ों पर रोली छिड़क दी. दिन चढ़ गया..सूर्योदय हो गया. "
"बड़े-बड़े डग भर तपन पास आते. जया और तेज़ दौड़तीं. तपन धीमे हो जया को आगे बढ़ने देते, फिर दौड़कर उनसे
जा मिलते. "
कृष्णा जी के लेखन में मानव प्रकृति एवं भावनाओं का अद्वितीय चित्रण मिलता है.
" 'लंच के लिए न आ पाई तो जान लें, सिंगरापोंग की थकन उतारती हूँ.'
तपन ने आँखें नहीं लौटाईं।
'शाम को भी न दिखीं तो...?'
वह अर्थ भरी गंभीर आँखों से उन्हें देखती रहीं...
'जब नहीं दीखूँगी, वह वाली शाम आज नहीं.' "
श्री के चरित्र में काम-वासना के आगे मूल्यों एवं वचनों की विवशता को दर्शाया गया है.
एक ऐसी लड़की, जो कि अपने साथ छल हुए जाने के बाद अपने दोषी के निवेदन को ठुकराने में तनिक नहीं झिझकती, के रूप में जया का चरित्र विनम्र होते हुए भी अद्भुत सशक्त लगता है.
" 'श्री दा ! माँ को लिख दें , मेरा लौटना नहीं होगा. ' श्री अनजाने ही कठोर हो उठे. नितांत अपरिचित तपन की बाँह पर जया का हाथ सह न सकने से उठ खड़े हुए और कठोरता से बोले— 'इतना तो अधिकार रखता हूँ कि पूछ सकूँ.' जया ने आगे की बात नहीं सुनी. संकेत से टोक दिया—'नहीं, श्री दा ,नहीं' "
कृष्णा जी की लेखनी का सहारा ले समस्त पहाड़, चायबागान, नदी, पेड़, पुल इत्यादि मानो बोल पड़ते हों. असाधारण लेखन के कारण यह कथा दीर्घकाल तक याद रहेगी, हालांकि कथा के अंत से मुझे शिकायत है.
उपन्यास का शीर्षक "तिन पहाड़" होने का कारण अस्पष्ट है.… (altro)